कविता : पलायन
बार बार लोगों के मन पर, होते है आघात। आज पलायन के मुद्दे पर, करते है कुछ बात। गाँव, शहर,
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Read Moreले चले चप्पू जिधर , जातीं उधर ये किश्तियाँ पर हैं पानी के चलन से , बाखबर ये किशतियाँ ।
Read Moreएक शहर में मैं आया था अपने गाँव से शहर में मैं आया कैसे मैं तो लाया गया था गाँव
Read Moreचाहता नहीं कोई मुझे पलकों पर उसकी आ जाऊँ; पर, मुखारविन्द पर अन्य के, कजराई बनकर छा जाऊँ। सम
Read Moreहर लड़की की तरह रजनी की भी ख्बाहिश थी कि उसे भी दुल्हन के रूप में लेने के लिए कोई राजकुमार
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