कविता

अश्क की अभिलाषा

 

चाहता नहीं कोई मुझे
पलकों पर उसकी आ जाऊँ;
पर, मुखारविन्द पर अन्य के,
कजराई बनकर छा जाऊँ।

सम हैं सभी मुझको तो
क्या अपने, क्या बेगाने;
हर्ष में भी, कर्ष में भी,
आ जाता साथ निभाने।

नर से लेकर नारायण तक
सबका ही साथ दिया मैंने;
जर्द पड़े हुए कपोलों को,
हौले से सहलाया मैने।

ये तो नहीं चाहा मैंने कभी
अरुण कपोलों को डगर बनाऊँ;
स्वाति की भाँति सीप के भीतर,
लोचन में बसकर लोचन हो जाऊँ।

फिर भी बरबस आ जाता हूँ
मन जब भारी हो जाता है;
पीड़ा जो अपनों ने ही दी,
कब तक कोई सह पाता है?
सरिता बन बहा तारा नयन से
कर में जब चीर दिया था आधा;
अड़े हुए थे हरिचन्द कठोर बन,
सुत दाहन में डाली थी बाधा।

पीड़ा बन गिरा वैदेही लोचन से
सुचिता को जब अंगारों पर बैठाया;
मिथु कारण फिर अग्निपरीक्षा हेतु,
पतिव्रता को पुनः वनवास दिलाया।

वो मैं ही था जो बाल्मीक बन
सान्त्वना देने आया था;
वन-वन भटकती जनकसुता को,
भटकन से मुक्त कराया था।

भीगा अलक पांचाली का था
हरण चीर हुआ जब उसका;
क्लीव बन बैठे रहे पति उसके,
और भग्न हुआ मान सभा का।

भरी सभा में कोई नहीं था ऐसा
जो उसकी लाज बचाने आया था;
तब मैं ही लाया था कन्हाई को,
और कृष्णा का चीर बढ़या था।

किस किसकी पीड़ा का नीर बहाऊँ
मन कभी पसीजा नहीं काल का;
कितने ही घन मेघ बन बरसें नैना,
पर, मिटता नहीं लिखा भाल का।

कोमल, तनु तन-मन है मेरा
तपन ज़रा-सी से ढह जाता;
खेल करे ना कोई मुझसे,
बहा आँसू लौट नहीं पाता।

देव! इतनी ही अभिलाषा है मेरी
भिगोऊँ न कभी नयन किसी के;
छिपा रहूँ सदा अलकों-पलकों में,
लज्जा जैसे वसन हों कामिनी के।

रामेश्वर सिहं राजपुरोहित "कानोडिया"

निवासी- बालोतरा, जिला - बाङमेर, सम्पर्क सूत्र - 9799683421 साहित्यिक गतिविधियां:- अखिल भारतीय अणुव्रत संस्थान, नई दिल्ली के द्वारा सन् 2013 में रचना ‘‘मार्गदर्शन’’(नाटक) का चयन हुआ। इसका ‘‘सफर अणुव्रतों का-शिक्षक की कलम से भाग 3’’ नामक पुस्तक में प्रकाशित भी किया गया। र्वा 2014 आखिरी शो’’(नाटक) राष्ट्रीय स्तर पर प्रथम स्थान पर रहा और ‘‘सफर अणुव्रतों का-शिक्षक की कलम से भाग 4’’ में प्रकााित हुआ। नवोदित 11 कवियों ने मिलकर के लखनऊ के प्रकाशिक (मणिमाला प्रकाशन-लखनऊ) से ‘‘बेजोड़ बाँसुरी’’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (2014) किया है। पाँच कविताओं का चयन हुआ जिसमें ‘वो चमक उठी तलवार’, ‘अटल चुनौती’, ‘ये जंगली भेड़ियें’, ‘रानी बिटिया’ व ‘वृत’ आदि कविताएँ है। अप्रकाशित साहित्य हैं जिसमें समाज कल्याण व आस-पास के वातावरण सम्बधि वर्णन भी है। इन साहित्य में -सिंहासन की भूख (उपन्यास) व कक्षा कक्ष, गलीया, शहर का कचरा, चलो साफ करे, गग नही मेरा घर, राहो से भटका, सावन आया, मजहब, क्या गायें, चलो बदलते है, नाा जीवन का नाा, बिमारीयों को निमन्त्रण उत्थान, अन्धविवास व पाखण्ड (नाटक) व दोशी कौन?, तारों की रानी, दहेज का दुःख, जमींदार का लोटा, ठाकूर की कुल्हाड़ी, आदत का लाचार, गधा और सेठ, मछरदानी, कर्ज की नौकरानी, माँ का प्यार, नवाब की नाकामी, जीवन के नेत्र, साटे का घाटा, अधूरे सपने, प्रकृति की प्रकृति, तेरे नाम जीवन, निरन्तर अभ्यास, मेरा वो एक दिन लौटा दो (कहानीयाँ) व सात स्वर, सर्द हवाऐं, रोहिड़े के फूल, छोटे-छोटे पौधे, अगर मैं बोलता, प्रातः काल, ऐसा कानुन बनाओं, चन्दा, स्वर्ग धरती पर है, दुामन को चेतावनी, हे मानव, राजनेता, बाढ़ व दर्द, हल्दी घाटी, सफलता ही लक्ष्य, सर्द सोना, और चाहत नही, नन्ही बच्ची, चल तु आज अपनी चाल में, मैं प्यास का पानी हूँ, एकल पुत्री जयते, आचार्य, नव कवि की बुआई, इतिहास का दर्द, मैं हूँ तेरे संग संग, अणुव्रत शिक्षक, भगवा ध्वज, मैं हिन्दी हूँ, वो दिन, राट्र का कबाड़ा, झील के किनारे, चलो बेचते है, कलम तु क्यो रोने लगी, रेत के गीत, जय हो, सुन्दर लफुन्दर, और बेच दो, ये जंगली भेंड़िये (कविताएँ) और कम्प्युटर लैब, ईद थी क्या?, ये आपके नेता है, वो गा रहा है, मन्दिर का पुजारी, बरसात है या तांडव, चलो सो जाते है, अब तो गा ले, (व्यंग्य) और लहर सखियाँ, धर्म बड़ा या कानून, मिडिया गलत दिशा में, पेड मिडिया, संयुक्त परिवार (लेख) आदि।

2 thoughts on “अश्क की अभिलाषा

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता. गहरी बात !

    • rameshwar singh

      नवलेखक को दिए प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद सा,

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