अपना गांव तो आजकल गुलसितां है लगता
अपना गांव तो आजकल गुलसितां है लगताहर तरफ रंग बिरंगे फूलों का बाजार है सजताजिधर भी नज़र दौड़ाएं फूल ही
Read Moreअपना गांव तो आजकल गुलसितां है लगताहर तरफ रंग बिरंगे फूलों का बाजार है सजताजिधर भी नज़र दौड़ाएं फूल ही
Read Moreहमारी सोने की चिड़िया लूटीहमें अप्रैल फूल बना गएचैत्र महीने से शुरू होता था जो देसी सालउसे पहली जनवरी से
Read Moreजवानी को कर रहा खोखलास्कूल कालेज सब जकड़े इसनेगांव अछूते नहीं रहे अबगली मोहल्ले भी पकड़े इसने माता पिता में
Read Moreबदला ज़माना रिश्तों में आ गई खटासआज रिश्तों का बना रहे सब उपहासदिखावा ज़्यादा हो गया रिश्तों की नहीं रही
Read Moreसदियों से जुल्म सहे हैंवो बदस्तूर अभी भी है जारीअपने वजूद की तलाश मेंक्यों भटक रही है अभी भी नारी
Read Moreकिश्ती को जो डूबने से बचा सके ऐसी पतवार चाहिएजड़ें काट दे बुराई की अच्छाई में ऐसी धार चाहिएनफरत की
Read Moreआरम्भ किसी चीज़ का हुआ हैउसका अंत भी अवश्य आएगाऊंचाईयों पर कोई कब तक ठहरेगाएक न एक दिन तो नीचे
Read Moreमौसम में यह कैसा परिवर्तन आ गयाफरवरी माह में आम पर बौर छा गयासर्दी में ही पानी के लिए हो
Read Moreअंतर्मन में चले द्वंद को किसको मैं समझाऊंसमय का खेल है सारा मैं खुद समझ न पाऊंअमिट लिखा जो भाग्य
Read Moreआ गया बसंत ऋतुओं का सरताजडाली डाली फूल लगे हैं खिलनेप्रेम रस नस नस में है बहने लगाआतुर है सजनी
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