// अहा ! जीवन..//
हे जीवन ! तुम मन हो ! मानसिक क्रीड़ा हो ! प्राकृतिक नियमों को कभी तिरस्कार करते हो तो कभी
Read Moreहे जीवन ! तुम मन हो ! मानसिक क्रीड़ा हो ! प्राकृतिक नियमों को कभी तिरस्कार करते हो तो कभी
Read Moreये जरूरतें हैं, हमारे बीच में एक दूसरे को मिलती बंधु – बाँधव – मित्र – शत्रु, छल,कपट सभी जीवन
Read Moreजीवन को जीतनेवाले बहुत कम लोग होते हैं। उनमें डॉ.जयप्रकाश कर्दम जी का नाम आदर के साथ लिया जाता है।
Read Moreमैं मनुष्य हूँ मेरा भी जीवन है मानवता का है विचार मेरा अच्छे समाज की परिकल्पना में आगे बढ़ना मैं
Read Moreहम भूले हैंं..! प्रश्न हैं कितने हमारे जीवन में अनादि से.. प्रश्न प्रश्न ही रह रहे हैं निज खोज के
Read Moreमैं आज का ही नहीं कल का भी हूँ हजारों सालों से दबाये गये असहाय जनता का स्वर हूँ अक्षरों
Read Moreजो कुछ है इस प्रकृति में वह यहीं के है हम सभी हैं उसका अधिकारी छीननेवालों से डरना क्यों हम
Read Moreहे विश्वास ! तुम निर्दय, निर्मम धूर्त हो ! अपने पाँव के नीचे हजारों सालों से मानवता को दबाते-दबाते, अट्टहास
Read Moreसाधना के उपाय हैं, मगर साधना नहीं नीति के अमूल्य वचन हैं, तो आचरणा का नहीं शांति की बातें रटते
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