लघुकथा – समय का पहिया
“बहू मंजरी, मैं जरा देवरानी के घर जा रही हूँ, वो कुछ बीमार सी हैं| अगर लेट हो जाऊं, सब्जी
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Read Moreज़मींदार करतार सिंह के बड़े बेटे के लड़का हुआ| सारा परिवार बहुत खुश था| करतार सिंह की तो बात ही
Read Moreनूतन वर्ष की नई उम्मीदें रश्मि की दुर्घटना से मिली चोटों को सहते से मन में जागृत हो रहीं थी|
Read Moreनिशा की सहेली मीनू को कुछ समय बाद मिलना हुआ ,उसे देख होश उड़ गए| निशा ने उसकी उदास सूरत
Read Moreराह तो हो हंसी हमनवी के लिये हमसफ़र चाहिए जिंदगी के लिए| हो बढे से कदम बेबसी में लिये जिंदगी
Read More“नवल, मुझे आज प्रिसिपल के घर ज़ा कुछ पेपर पर दस्तखत करवाने हैं, फिर नई जगह हाजरी देनी है| नहीं
Read Moreमान गुरु कहना सफल होते हैं ज्ञान महिमा से कुशल होते हैं | रोज़ हो गुरु मान दृढ़ हो सीखे
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