ग़ज़ल “बातें ही बातें”
ग़ज़ल “बातें ही बातें” (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)—रसना से मिलती सौगातेंअच्छी लगतीं प्यारी बातें—दो से चार नयन जब होतेआँखों में
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Read Moreबाल कविता “आम और लीची” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)—आम फलों का राजा होतालीची होती रानीगुठली ऊपर गूदा होताछिलका है बेमानी—जब बागों
Read Moreबालकविता “खेतों में शहतूत उगाओ”(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)—कितना सुन्दर और सजीला।खट्टा-मीठा और रसीला।।—हरे-सफेद, बैंगनी-काले।छोटे-लम्बे और निराले।।—शीतलता को देने वाले।हैं शहतूत
Read Moreखिली रूप की धूप “दोहा संग्रह”डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’मेरे नज़रिये से डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ हिन्दी साहित्य में जाना पहचाना
Read Moreबालकविता “खीरे को भी करना याद” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)—तन-मन की जो हरता पीरावो ही कहलाता है खीरा—चाहे इसका रस पी
Read Moreगीत “हर बिल्ला नाखून छिपाता”(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)—सच्चाई में बल होता है,झूठ पकड़ में है आ जाता।नाज़ुक शाखों पर जो चढ़ता,वो
Read Moreदोहे “बादल करते हास”—बारिश का पीकर सलिल, आम हो गये खास।पक जायेंगे आम अब, होगी मधुर मिठास।1।—गरमी कुछ कम हो
Read Moreबालगीत “मन को बहुत लुभाते आम”—एक साल में आते आम।सबके मन को भाते आम।।—जब वर्षा से आँगन भरता,स्वाद बदलने को
Read Moreगीत “मौसम की विपरीत चाल है”—कैसे मैं दो शब्द लिखूँ और कैसे उनमें भाव भरूँ?तन-मन के रिसते छालों के, कैसे
Read Moreगीत “मानस में संवेद नहीं”—देश-वेश परिवेश धर्म का, मन में कुछ भी भेद नहीं।देख लिए पतझड़-बसन्त, अब जाने का है
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