“तोंद झूठ की बढ़ी हुई है”
अब कैसे दो शब्द लिखूँ, कैसे उनमें अब भाव भरूँ? तन-मन के रिसते छालों के, कैसे अब मैं घाव भरूँ?
Read Moreअब कैसे दो शब्द लिखूँ, कैसे उनमें अब भाव भरूँ? तन-मन के रिसते छालों के, कैसे अब मैं घाव भरूँ?
Read Moreज़िन्दगी को आज खाती है सुरा। मौत का पैगाम लाती है सुरा।। उदर में जब पड़ गई दो घूँट हाला,
Read Moreसीधा-सादा, भोला-भाला। बचपन होता बहुत निराला।। बच्चे सच्चे और सलोने। बच्चे होते स्वयं खिलौने।। पल में रूठें, पल में मानें।
Read Moreअभी-अभी बारिश हुई, अभी खिली है धूप। सबके मन को मोहता, चौमासे का रूप।। खेल रहे आकाश में, बादल अपना
Read Moreकरते-करते भजन, स्वार्थ छलने लगे। करते-करते यजन, हाथ जलने लगे।। झूमती घाटियों में, हवा बे-रहम, घूमती वादियों में, हया बे-शरम,
Read Moreकहाँ खो गई मीठी-मीठी इन्सानों की बोली। किसने नदियों की धारा में विष की बूटी घोली।। कहाँ गयीं मधुरस में
Read Moreजो भी आगे कदम बढ़ायेंगे। फासलों को वही मिटायेंगे।। तुम हमें याद करोगे जब भी, हम बिना पंख उड़ के
Read Moreमिट्टी को कंचन करे, नहीं लगाता देर। दिखा रहा है आइना, समय-समय का फेर।१। समय-समय की बात है, समय-समय के
Read Moreजिसकी माटी में चहका हुआ है सुमन, मुझको प्राणों से प्यारा वो अपना वतन। जिसकी घाटी में महका हुआ है
Read Moreरूप कितने-रंग कितने। बादलों के ढंग कितने।। कहीं चाँदी सी चमक है, कहीं पर श्यामल बने हैं। कहीं पर छितराये
Read More