“घुटता गला सुवास का”
आम नहीं अब रहा आम, वो तो है केवल खास का। नजर नहीं आता बैंगन भी, यहाँ कोई विश्वास का।।
Read Moreआम नहीं अब रहा आम, वो तो है केवल खास का। नजर नहीं आता बैंगन भी, यहाँ कोई विश्वास का।।
Read Moreआसमान का छोर, तुम्हारे हाथो में। कनकइया की डोर तुम्हारे हाथो में।। लहराती-बलखाती, पेंग बढ़ाती है, नीलगगन में ऊँची उड़ती
Read Moreकुनबे और पड़ोस में, अच्छे रखो रसूख। तब रोटी अच्छी लगे, जब लगती है भूख।। — रोटी के अस्तित्व है,
Read Moreपहले छाया बौर, निम्बौरी अब आयीं है नीम पर। शाखाओं पर गुच्छे बनकर, अब छायीं हैं नीम पर।। मेरे पुश्तैनी
Read Moreमाँ को नमन करते हुए! — उँगली पकड़ हमारी माता, चलना हमें सिखाती है!! दुनिया में अस्तित्व हमारा, माँ के
Read Moreअनज़ान रास्तों पे निकलना न परिन्दों मंजिल को हँसी-खेल समझना न परिन्दों आगे कदम बढ़ाना ज़रा देख-भाल कर काँटों से
Read Moreसूरज की भीषण गर्मी से, लोगो को राहत पहँचाता।। लू के गरम थपेड़े खाकर, अमलतास खिलता-मुस्काता।। डाली-डाली पर हैं पहने
Read Moreमित्रों…! गर्मी अपने पूरे यौवन पर है। ऐसे में मेरी यह बालरचना आपको जरूर सुकून देगी! पिकनिक करने का मन
Read Moreगीत बना कर मैं नया, कहता मन की बात। काम-काम में दिन गया, आयी सुख की रात।। आयी सुख की
Read Moreभाव-सार के बिन नहीं, होता हृदय विभोर। थोड़े दोहाकार है, ज्यादा दोहाखोर।। — मन में मैल भरा हुआ, होठों पर
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