“अमलतास खिलता-मुस्काता”
सूरज की भीषण गर्मी से, लोगो को राहत पहँचाता।। लू के गरम थपेड़े खाकर, अमलतास खिलता-मुस्काता।। डाली-डाली पर हैं पहने
Read Moreसूरज की भीषण गर्मी से, लोगो को राहत पहँचाता।। लू के गरम थपेड़े खाकर, अमलतास खिलता-मुस्काता।। डाली-डाली पर हैं पहने
Read Moreमित्रों…! गर्मी अपने पूरे यौवन पर है। ऐसे में मेरी यह बालरचना आपको जरूर सुकून देगी! पिकनिक करने का मन
Read Moreगीत बना कर मैं नया, कहता मन की बात। काम-काम में दिन गया, आयी सुख की रात।। आयी सुख की
Read Moreभाव-सार के बिन नहीं, होता हृदय विभोर। थोड़े दोहाकार है, ज्यादा दोहाखोर।। — मन में मैल भरा हुआ, होठों पर
Read Moreकभी न हारे जंग में, अपने सैनिक वीर। शासन का रुख देखकर, सेना हुई अधीर।। — घर से रहकर दूर
Read Moreवो मजे में चूर हैं, बस इसलिए मग़रूर हैं हम मजे से दूर हैं, बस इसलिए मजदूर हैं आज भी
Read Moreसुख के बादल कभी न बरसे, दुख-सन्ताप बहुत झेले हैं! जीवन की आपाधापी में, झंझावात बहुत फैले हैं!! अनजाने से
Read Moreखाली कभी न बैठिए, करते रहिए काम। लिखने-पढ़ने से सदा, होगा जग में नाम।। — खाली रहे दिमाग तो, मन
Read Moreज़ज़्बात के बिन, ग़ज़ल हो गयी क्या बिना दिल के पिघले, ग़ज़ल हो गयी क्या नहीं कोई मक़सद, नहीं सिलसिला
Read Moreअमलतास के पीले गजरे, झूमर से लहराते हैं। लू के गर्म थपेड़े खाकर भी, हँसते-मुस्काते हैं।। ये मौसम की मार,
Read More