Author: *डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

गीत/नवगीत

“कनकइया की डोर तुम्हारे हाथो में”

आसमान का छोर, तुम्हारे हाथो में। कनकइया की डोर तुम्हारे हाथो में।। लहराती-बलखाती, पेंग बढ़ाती है, नीलगगन में ऊँची उड़ती

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