गीत “मानस में संवेद नहीं”
गीत “मानस में संवेद नहीं”—देश-वेश परिवेश धर्म का, मन में कुछ भी भेद नहीं।देख लिए पतझड़-बसन्त, अब जाने का है
Read Moreगीत “मानस में संवेद नहीं”—देश-वेश परिवेश धर्म का, मन में कुछ भी भेद नहीं।देख लिए पतझड़-बसन्त, अब जाने का है
Read Moreगीत “अमलतास के गजरे”—अमलतास के पीले गजरे, झूमर से लहराते हैं।लू के गर्म थपेड़े खाकर भी, हँसते-मुस्काते हैं।।—ये मौसम की
Read Moreगीत “केवल यादें बची, परिन्दे किधर गये”—उजड़ गया वो बाग, माली गुजर गये।केवल यादें बची, परिन्दे किधर गये।।—कहाँ गये वो
Read Moreगीत “नजरबन्द हो गयी देश में अपनी प्यारी खादी है”—गर्मी-सर्दी दोनों में, सुख देती अपनी खादी हैखादी के ही साथ
Read Moreजब-जब आती मस्त बयारें,तब-तब हम लहराते हैं।काँटों की पहरेदारी में,गीत खुशी के गाते हैं।।—हमसे ही अनुराग-प्यार है,हमसे मधुमास जुड़ा,हम संवाहक
Read Moreगीत “तकदीर बदल जाती है”—आमन्त्रण में बल हो तो ,तस्वीर बदल जाती है।पत्थर भी भगवान बनें,तकदीर बदल जाती है।।—अधरों को
Read Moreदोहे “हिन्दी का उत्थान”—साधक कभी न हारता, साधन जाता हार।सच्ची निष्ठा से मिले, जीवन का आधार।1।—लगे हमारे देश में, रोटी
Read Moreकविता “चोर पुराण”—कुछ ने पूरी पंक्ति उड़ाई,कुछ ने थीम चुराई मेरी।मैं तो रोज नया लिखता हूँरोज बजाता हूँ रणभेरी।—चोरों के
Read Moreमोम कभी हो जाता है, तो पत्थर भी बन जाता है।दिल तो है मतवाला गिरगिट, ‘रूप’ बदलता जाता है।।—कभी किसी
Read Moreगीत “आँधियों में दीप अब कैसे जलेगा”—रौशनी का सिलसिला कैसे चलेगा?आँधियों में दीप अब कैसे जलेगा?—कामनाओं का प्रबल सैलाब जब
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