Author: *डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

बाल कविता

बालकविता “गुब्बारों की महिमा न्यारी”

बच्चों को लगते जो प्यारे। वो कहलाते हैं गुब्बारे।। गलियों, बाजारों, ठेलों में। गुब्बारे बिकते मेलों में।। काले, लाल, बैंगनी,

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गीत/नवगीत

गीत : ढंग निराले होते जग में मिले जुले परिवार के

ढंग निराले होते जग में, मिले जुले परिवार के। देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।। चमन एक हो किन्तु

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बाल कविता

बालकविता “सारा दूध नही दुह लेना”

मेरी गैया बड़ी निराली, सीधी-सादी, भोली-भाली। सुबह हुई काली रम्भाई, मेरा दूध निकालो भाई। हरी घास खाने को लाना, उसमें

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