अन्नदाता…
तेरी लाचारी के लिये, वक्त भला किसके पास है दौलत के इस आंगन में, तु तो बस अनचाही घास है।
Read Moreरोती है दिनरात जहां मानवता, कैसे खुशी मनाऊं। हर आंगन गम के आंसू है, बोलो मंगल कैसे गाऊं॥ सिसकी की
Read Moreये अपलक देखती आंखे शून्य मे निहारती नजर चेहरे पर मायूसी सिले से लब बहुत कुछ कहतें है सब के
Read Moreजो दिल पर बीत गई, उस बात की बात ना कर। मेरे सपनों की खातिर, काली अपनी रात ना कर॥
Read Moreमैं जीवन की धारा हूं गंगा सी शीतल निर्मल हूं। मुझको अबला समझने वालों मैं जीवन का संबल हूं॥ मैं
Read Moreबात बात पर मुस्काने लगे हो आखिर बात क्या है। खुद को कुछ और दिखाने लगे हो आखिर बात क्या
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