ग़ज़ल
रात को रात बोलता हूँ मैं लोग कहते हैं सिरफ़िरा हूँ मैं इम्तिहां ख़ूब लीजिये मेरा मुश्किलों में पला बढ़ा
Read Moreपीड़ित को दे तारीखें जब, सो जाती है न्याय व्यवस्था। तब कानून कबीलों वाले, जनता को भाने लगते हैं।। कुछ
Read Moreज्यादा तर मतलब का है व्यवहार आज की दुनिया में है तो लेकिन कम है सच्चा प्यार आज की दुनिया
Read Moreहौसला है मंजिलों का रास्ता मालूम है इसलिये तो ज़िन्दगी का फलसफ़ा मालूम है और कुछ मालूम चाहे हो नही
Read Moreपूछ मत मेरे सफ़र का तज’रबा कैसा रहा पाँव में छाले लिये अँगार पर चलता रहा ख़ूब कस मुझको कसौटी
Read Moreशूल छाले और अनगिन ठोकरों के बाद भी मंजिलों पर हैं निगाहें मुश्किलों के बाद भी है करम मुझ पर
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