घाट-84, रिश्तों का “पोस्टमार्टम”
“चलो कपड़े पहनते हैं अब इश्क़ पूरा हुआ… छी… बस यही रह गया है प्यार-मुहब्बत का पर्याय…” कहते हुये निशा ने
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Read Moreमेरे हिस्से, आसमान रहने दे। इंसान हूँ तो, इंसान रहने दे।। पूछोगे कुछ तो निकलेंगें आँसू, आँखें हमारी वीरान रहने
Read Moreदूर हुये हैं, तुमसे अब हम, चाहो तो, खुश हो लेना। याद कभी आ जायें तुमको, हँसना चाहें रो लेना।।
Read Moreपार्क में टहलते हुये अचानक से मेरा पैर मुड़ गया और मै जोर से चिल्लाया आह! कि तभी किसी ने
Read Moreइन्तजार जिन्दगी के बाद का कल जिन्दगी से अचानक मुलाकात हो गयी। उसने पूछा, किसे ढूढते हो मानस ? मुझे
Read More“चलो कपड़े पहनते हैं अब इश्क़ पूरा हुआ“ छी….. बस यही रह गया है प्यार-मुहब्बत का पर्याय…. कहते हुये निशा
Read Moreग़ज़लों सी आँखें, गीतां से गाल। छन्दों सी सूरत, दोहे से बाल।। दिल ये करे गुनगुनाता रहूँ कविता हो तुम
Read Moreमेरी जाति का नेता हो तो उसको ये अधिकार है कर दे मेरी बोटी बोटी फिर भी उससे प्यार है
Read Moreआओ ना एक बार, भींच लो मुझे उठ रही एक कसक अबूझ – सी रोम – रोम प्रतीक्षारत आकर मुक्त
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