होली के रंग मेरे व्यक्तिगत अनुभव के संग”
होली का नाम लेते ही सहसा बचपन वाली होली की ही याद आ ही जाती है। माँ, पापा हम सभी
Read Moreहोली का नाम लेते ही सहसा बचपन वाली होली की ही याद आ ही जाती है। माँ, पापा हम सभी
Read Moreन जाने वह यह सबकर लेती थी कैसे?तंगी भरे दिनों में भीरख कंधे पर हाथनिकाल देती थी पैसे। देखता रहता
Read Moreनहीं है ख्वाहिश की दरिया से जा मिलूँ अभी,लोगों की प्यास बुझे कुछ और बहुँ मैं अभी।फेंक दे तू उत्कंठा
Read Moreथोड़ी जरूरी दूरी है करीब आने के लिएवो कहते हैं कि दे जाओ कोई निशानी बिन तेरे हमको है अब
Read Moreमन में नित नई आस लिएअरमान भी कुछ खास लिएफिरती रहती अब दिन रैनपढ़ तो लो क्या कहते नैन। शिशिर
Read Moreजो देखोगे ऐसे,बढ़ती धड़कन है,गुजरेंगे फिर कैसे? नज़रें तो मिलने देमेंरी आँखों मेंसपने तो पलने दे। सपनो का क्या बोलोजागी
Read Moreमुंडन,सोहर,शादी,ब्याह,सब करें हम हिंदी मेंद्वार छिकाई काजल कराई वो भी होती हिंदी मेंमाड़ो में ज़ब आये बाराती तो गाली भी
Read More