श्रद्धेय महादेवी : नीर भरी दुख की बदली
वेदने तू यह बता देक्यों हृदय है श्रांत तेराचिर विरह की स्वामिनी तूक्यों है मन उद्भ्रांत तेरा। बस क्षणिक भर
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Read Moreदेखा है पिता को सबकेअरमानों की झोली ढोते हुएउसे पूरा करने में खुद को खोते हुए| उफ्फ कभी नहीं कियाबच्चों
Read Moreक्यों मन मलिन तेरा सखेक्या याद किसी की आई है?बैठे हो सरि के कूल परदिखती तेरी परछाई है। क्योंकर अचंभित
Read Moreनहीं है ख्वाहिश की दरिया से जा मिलूँ अभी लोगों की प्यास बुझे कुछ और बहुँ मैं अभी। फेंक दे
Read Moreतुम्हारी विस्तार को कैसे दे शब्दों से लगाम। तुम तो हो अथाह अनंत नहीं हो कोई आम। माँ के बराबर
Read Moreपरिपक्व स्त्रियाँ भी सोलह वर्षीय कमसिन बाला की तरह चंचल हो जाती हैं ज़ब लोग कहते हैं की आपसे लगाव
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