ऋतुराज वसन्त के मुक्तक
(1) गाँठ मन की खुल गई,मधुमास सुखकर लग रहा। गुल खिले हैं ख़ूब ही,अवसाद डर से भग रहा। हैं सतातीं
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Read Moreअसफलता है एक चुनौती,दो-दो वार करो। फैला चारों ओर अँधेरा,पर तुम लक्ष्य वरो।। साहस लेकर,संग आत्मबल बढ़ना ही होगा जो
Read Moreकोकिली कंठी गायिका,छोड़ गई,हम दीन। ऐसा स्वर अब है कहाँ,कौन बजाए बीन। बिलख रहा संगीत है,श्रोता सब हैं मूक, मातम
Read Moreमंडला-“लता जी भारत की आवाज़ थीं।पद्मश्री से लेकर भारत रत्न तक के समस्त सम्मान,अवार्ड प्राप्त करने वाली सरस्वती स्वरूपा कोकिल
Read More(1) प्रेम की बगिया विहँसती,तब खिले परिवार। प्यार से परिवार में नित,नेहमय रसधार।। मन रहे निर्मल अगर तो,हाथ में वरदान।
Read Moreमातु शारदे,नमन् कर रहा,तेरा नित अभिनंदन है। ज्ञान की देवी,हंसवाहिनी,तू माथे का चंदन है ।। अक्षर जन्मा है तुझसे ही,
Read Moreश्रम करने वालों के आगे,गहन तिमिर हारा है। श्रम करने वालों के कारण,ही तो उजियारा है।। खेत और खलिहानों में
Read Moreसत्य-अहिंसा रोशनी,हैं जीवन के सार। लाते हैं जो हर घड़ी,अंतहीन उजियार।। नीति अहिंसा की बड़ी,सचमुच बहुत महान । जीवन की
Read Moreरोदन करती आज दिशाएं,मौसम पर पहरे हैं ! अपनों ने जो सौंपे हैं वो,घाव बहुत गहरे हैं !! बढ़ता जाता
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