मुक्तक/दोहा

पृथ्वी के दोहे

धरती माता पालती,संतति हमको जान।
धरती माता के लिए,बेहद है सम्मान।।
अवनि लुटाती नेह नित,करुणा का प्रतिरूप।
इसकी पावन गोद में,सूरज जैसी धूप।।
वसुधा का संसार तो,बाँटे सुख हर हाल।
हवा,नीर,भोजन,दुआ,पा हम मालामाल।।
धरा-गोद में बैठकर,होते सभी निहाल।
मैदां,गिरि,जंगल सघन,सुख को करें बहाल।।
हरियाली के गीत नित,गाती वसुधा ख़ूब।
हम सबको आनंद है,बिछी हुई है दूब।।
वसुधा का सौंदर्य लख,मन में जागे आस।
अंतर में उल्लास है,नित नेहिल अहसास।।
धरती माँ करुणामयी,बनी हुई वरदान।
नित हम पर करती दया,देती है अनुदान।।
धरा आज प्रमुदित हुई,करती हम पर नाज़।
पेड़ों का रोपण किया,हुई सुखद आवाज़।।
गाती रोज़ वसुंधरा,हरियाली के गीत।
जब साँसें सबको मिलें,होगी तब ही जीत।।
वसुधा का है नेह यह,जो देती है अन्न।
वरना हम रहते सदा,भूखे और विपन्न।।
        — प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com