कविता

उदास लड़की

उसकी उदासियां
मेरे मुस्कुराते चेहरे को टोक रही थी
और उसे देखकर
मैं भी उदास हो गई

ओह, कितना दर्द था उसकी आँखों में
जैसे एक चंचल नदी बहते-बहते
अचानक ठहर गई हो

इतने बड़े घर में सब कुछ तो था
पर कमी थी मुस्कुराहट की
उन खुशियों की जो किसी
मकान को घर बनाता है

उसके बदन पर लिपटी महंगी साड़ी भी
नहीं ढक पा रही थी
उसके गम के बोझ को
माथे पर लगा सिंदूर
बता रहा था उसके प्रेम की गहराई को

मेरे सीने से लगकर उसने
बस इतना ही कहा
तू ठीक है ना ! आजकल कहां है
मिलती नहीं है

और इन शब्दों के सहारे उसने
अपने दर्द को हल्का सा
बहा दिया आसुओं में…..

किया था प्यार और विश्वास उसने
पर तोड़कर सभी वादों को वो
किसी और के पैरों का पाजेब बन नाच रहा था ।

*बबली सिन्हा

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