Author: *प्रो. शरद नारायण खरे

मुक्तक/दोहा

समरसता के दोहे

समरसता यदि संग है,तो पलता मधुमास। अपनाकर संवेदना,मानव बनता ख़ास।। समरसता-आचार तो,है करुणा का रूप।। जिससे खिलती चाँदनी,बिखरे उजली धूप।।

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