Author: *प्रो. शरद नारायण खरे

मुक्तक/दोहा

समरसता के दोहे

समरसता यदि संग है,तो पलता मधुमास। अपनाकर संवेदना,मानव बनता ख़ास।। समरसता-आचार तो,है करुणा का रूप।। जिससे खिलती चाँदनी,बिखरे उजली धूप।।

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मुक्तक/दोहा

हमारी विरासत-खंडहर

खड़े खंडहर आज जो,कहते वे इतिहास। कला-विरासत को लिए,देते सुख-अहसास।। दिखती जिनमें श्रेष्ठता,होता गौरव-बोध। ढूँढ़-ढूँढ़कर कर रहे,पढ़ने वाले शोध।। कहीं

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