मुक्तक/दोहा

हमारी विरासत-खंडहर

खड़े खंडहर आज जो,कहते वे इतिहास।
कला-विरासत को लिए,देते सुख-अहसास।।

दिखती जिनमें श्रेष्ठता,होता गौरव-बोध।
ढूँढ़-ढूँढ़कर कर रहे,पढ़ने वाले शोध।।

कहीं महल,तो दुर्ग हैं,मंदिर-मस्जिद रूप।
खंडहरों में हैं छिपी,बीते युग की धूप।।

नालंदा की भव्यता,संस्कार का नूर।
विश्वगुरू हम थे प्रखर,विद्या से भरपूर।।

कितना स्वर्णिम था कभी,जानें आप,अतीत।
उसने यश,गौरव रचा,गया ‘शरद’ जो बीत।।

खंडहरों में शान है,खंडहरों में मान।
हर कोई क्यों ना करे,अपनों का गुणगान।।

पूरब-पश्चिम में चमक,उत्तर में सम्मान।
दक्षिण में है बंदगी,निज अतीत की आन।।

सकल विश्व के पर्यटक,आते करने दर्श।
देख हमारी सभ्यता,सारे करते हर्ष।।

खंडहरों की जय सदा,कहें बहुत,बिन बोल।
रक्षित स्थापत्य हो,सचमुच वह अनमोल।।

— प्रो.(डॉ.) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com