व्यंग्य – कहीं… नाक, न कट जाए?
मानव शरीर में अत्यंत ‘अल्पसंख्यक’ होने के कारण नाक को आरक्षण की सुविधा मिली हुई है। वह कटती है और
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Read Moreपधारो वसंत! तुम हर साल की तरह इस बार भी बिन बुलाए आ गए? बड़े बेशरम हो भाई!! तुम ऋतुराज
Read Moreमैं एक असामाजिक-तत्व हूँ क्योंकि न शराब पीता हूँ और ना ही चाय। चार लोगों में बैठने लायक आदमी नहीं
Read Moreपूछा है शाखों से जड़ों ने, हम बिन चैन क्या पाओगे? सूख गए जो प्राण हमारे, क्या तुम फिर मुसकाओगे?
Read Moreहम अपने दुश्मनों को भी, गले हँसकर लगाते हैं, हुनर दुनियाँ में जीने का, चलो तुमको सिखाते हैं। जो कायल
Read Moreअंधे करते बात यहाँ पर , चश्मदीद गवाही की झूठों के मुँह बात सुनी है, हमने यहाँ सचाई की। भेद
Read Moreअकड़ दीप की देख के मैंने, प्रश्न एक जब उससे पूछा- “किस कारण तू झूम रहा है, किए हुए सिर
Read Moreएक शिक्षक होने के नाते कहता हूँ कि मुझे अपने प्रजातांत्रिक देश की शिक्षाप्रणाली का वह अंग सबसे अधिक पसंद
Read Moreमैं एक असामाजिक-तत्व हूँ, क्योंकि न शराब पीता हूँ और ना ही चाय। चार लोगों में बैठने लायक आदमी नहीं
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