Author: आचार्य शीलक राम

सामाजिक

उन्मुक्त बाजारवाद, उपयोगितावाद और पूंजीवाद के मध्य पिसता हुआ जनमानस

 जो व्यक्ति बदलना नहीं चाहते हैं, उन पर मेहनत करना बेकार है! ऐसे व्यक्तियों पर मेहनत करना अपनी स्वयं की

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

सिद्धांतों और व्याख्याओं का अजायबघर श्रीमद्भगवद्गीता

श्रीमद्भगवद्गीता पर सैकड़ों प्रसिद्ध तथा सैकड़ों अप्रसिद्ध अनुवाद, व्याख्याएँ, टीकाएँ,भाष्य आदि पचासों भाषाओं में हमारे समक्ष उपलब्ध हैं! तुलसीदास की

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

क्या श्रीमद्भगवद्गीता में सभी समस्याओं का समाधान मौजूद है? 

आजादी के पश्चात् हमारे धर्माचार्यों को भी धर्म की अपेक्षा राजनीति में रस अधिक लग रहा है! इसीलिये तो धर्माचार्य

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

‘चार्वाक’ को पैदा करने के लिये हम ही जिम्मेदार हैं

धर्मगुरुओं द्वारा जब -जब धर्म, अध्यात्म, योग, कर्मकांड की आड में पाखंड, ढोंग, शोषण, भेदभाव, ऊंच -नीच का गंदा खेल

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