लघुकथा : सुहागिन
वृद्ध पति पत्नी जल्दी ही रात का भोजन कर लेते , अतीत की यादों को ताजी करते हुए टी वी
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Read Moreजावित्री की साध थी कि डाक्टर बेटे कि लिए बहू ही डॉक्टर हो और वह साध पूरी भी हो गई
Read Moreछोटे भाई की शादी थी। दिसंबर की कड़ाके की ठण्ड। हाथ पैर ठिठुरे जाते थे, पर बराती बनने की उमंग
Read Moreपिता की बड़ी इच्छा थी कि बेटी खूब पढे–लिखे और विदेश जाये। बेटी ने उच्च शिक्षा तो प्राप्त कर ली
Read Moreबेटी की विदाइगी के समय आकाश की रुलाई फूट पड़ी और सुबकते हुए अपने समधी जी से बोला –भाई साहब
Read Moreपति के ऑफिस जाने के बाद वह सजधज कर फोन हाथ में लेकर बैठ जाती या किटी पार्टी में घंटों
Read Moreपरेश बाबू ने बड़ी मुश्किल से चार पैसे जुटाए थे। पाई–पाई बहुत सोच समझकर खर्च करते । घर का खास-खास
Read Moreमाँ की असमय मौत ने गुलाल से उसका सुरक्षित गढ़ छीन लिया। अब वह पाँच वर्ष का नन्हा सहमा –सहमा
Read Moreटिंकू स्कूल से घर जा रहा था । रास्ते में उसे एक दुबली–पतली भिखारिन मिली, जिसका पेट भूख के कारण
Read Moreमैं जब छोटी थी मुझे इमली, बेर, जामुन खाने का बड़ा शौक था। लेकिन उन्हें खाते ही खांसी हो जाती।गले से ऐसी आवाज निकलती मानो
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