लघुकथा

लघुकथा – इलाज

पति के ऑफिस जाने के बाद वह सजधज कर फोन हाथ में लेकर बैठ जाती या किटी पार्टी में घंटों बिताने चली जाती । यदि उसका बाहर जाना न हुआ तो कोई सहेली आ धमकती और फिर शुरू हो जाती खबरों की चौपाल। चौके में जाने से उसे महा चिढ़ थी। एक बार महाराजिन को समझा देती कि खाने में क्या–क्या बनेगा फिर पलटकर न देखती कि वह कैसा बना रही है। वही उसकी बूढ़ी जर्जर काया वाली सास को दोपहर का खाना खिला देती । कच्ची–पक्की रोटी कैसी भी मिले सास बेचारी मन मार कर खा लेती । डर के मारे उससे कुछ कह भी न पाती कि कहीं बहू से एक की दो लगा दे और बहू का पारा चढ़ा दे।

कुछ दिनों से रोटी कड़ी बन रही थीं जिन्हे सास ठीक से चबा न पाती । चबाने के चक्कर में उसके हिलते दाँत और हिल गए । दर्द से बेहाल बेटे से बोली– ‘बेटा समय मिलने पर मुझे दांतों के डाक्टर को दिखा दे ।’

‘ठीक है माँ,अगले हफ्ते तुझे ले चलता हूँ ।’

उसके दूसरे दिन ही बेटा खाते समय पत्नी पर बरस पड़ा- ‘ये रोटियाँ हैं या पत्थर के ठीकड़े । जब मैं ही नहीं खा सकता, माँ कैसे खाती होगी । इसी कारण तो उसके दर्द हो गया । महाराजिन से कुछ कहती क्यों नहीं हो ?तुम्हारा तो काम चल जाता है । अपनी सहेलियों के घर दावत उड़ाती रहती हो पर हमारे बारे में भी तो कुछ सोचो।’

‘कितनी बार तो कहा है पर सुनती ही नहीं।’

‘सुनती नहीं तो दूसरी रख लो जो तुम्हारी सुने ।’

‘दूसरी मिलना क्या आसान है।’

‘सब मिल जाएगी थोड़ा पैसा ज्यादा दे दो ।’

‘आप जैसे ही लोग तो नौकरों के रेट बढ़ा देते हैं।’

‘ऐसा खाना खाने से तो कोई भी बीमार हो सकता है । ऐसा न हो कि चार पैसे बचाने के चक्कर में चालीस पैसे खतम हो जाएँ ।’

दूसरे दिन खाने बनाने वाली की छुट्टी कर दी गई साथ ही एक नई महाराजिन की तलाश होने लगी। अब तो बहू को रसोई में घुसना ही पड़ा। खाना बनते ही पुकार होने लगती– ‘जल्दी खाना खाने आ जाओ । बहू सोचती-खाने का काम खतम हो तो जान छूटे।’

चार–पाँच दिनों के बाद खाना खाते–खाते बेटा बोला – ‘माँ,डॉक्टर के कब चलना है ?’

‘अब तो पहले से दाँत का दर्द कम है।’

‘कोई दवा खाई थी क्या?’

‘बहू के हाथ की मुलायम –मुलायम रोटियाँ खाने को मिल रही हैं ,वे क्या दवा से कम हैं।’ माँ के चेहरे पर मीठी सी मुस्कान थी।

सुधा भार्गव

सुधा भार्गव

जन्म -स्थल -अनूपशहर ,जिला –बुलंदशहर (यू .पी .) शिक्षा --बी ,ए.बी टी (अलीगढ़ ,उरई) प्रौढ़ शिक्षा में विशेष योग्यता ,रेकी हीलर। हिन्दी की विशेष परीक्षाएँ भी उत्तीर्ण की। शिक्षण --बिरला हाई स्कूल कलकत्ता में २२ वर्षों तक हिन्दी भाषा का शिक्षण कार्य |किया शिक्षण काल में समस्यात्मक बच्चों के संपर्क में रहकर उनकी भावात्मक ,शिक्षात्मक उलझनें दूर करने का प्रयास रहा । सेमिनार व वर्कशॉप के द्वारा सुझाव देकर मुश्किलों का हल निकाला । सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अंतर्गत बच्चों की अभिनय काला को निखारा । समय व विषय के अनुसार एकांकी नाटक लिखकर उनके मंचन का प्रयास हुआ । संस्थाएं --दिल्ली -ऋचा लेखिका संघ ,हिन्दी साहित्य सम्मेलन तथा साहित्यिकी (कलकत्ता ) से जुड़ाव । दिल्ली आकाशवाणी रेडियो स्टेशन में बालविभाग व महिला विभाग के जुड़ाव के समय बालकहानियाँ व कविताओं का प्रसारण हुआ । देश विदेश का भ्रमण –राजस्थान ,बंगाल ,दक्षिण भारत ,उत्तरी भारत के अनेक स्थलों के अतिरिक्त सैर हुई –कनाडा ,अमेरिका ,लंदन ,यूरोप ,सिंगापुर ,मलेशिया ,नेपाल आदि –आदि । साहित्य सृजन --- विभिन्न विधाओं पर रचना संसार-कहानी .लघुकथा ,यात्रा संस्मरण .कविता कहानी ,बाल साहित्य आदि । साहित्य संबन्धी संकलनों में तथा पत्रिकाओं में रचना प्रकाशन विशेषकर अहल्या (हैदराबाद)।अनुराग (लखनऊ )साहित्यिकी (कलकत्ता )नन्दन (दिल्ली ) अंतर्जाल पत्रिकाएँ –द्वीप लहरी ,हिन्दी चेतना ,प्रवासी पत्रिका ,लघुकथा डॉट कॉम आदि में सक्रियता । प्रकाशित पुस्तकें— रोशनी की तलाश में --काव्य संग्रह इसमें गीत ,समसामयिक कविताओं ,व्यंग कविताओं का समावेश है ।नारीमंथन संबंधी काव्य भी अछूता नहीं। बालकथा पुस्तकें---कहानियाँ मनोरंजक होने के साथ -साथ प्रेरक स्रोत हैं। चरित्र निर्माण की कसौटी पर खरी उतरती हुई ये बच्चों को अच्छा नागरिक बनाने में सहायक होंगी ऐसा विशवास है । १ अंगूठा चूस २ अहंकारी राजा ३ जितनी चादर उतने पैर 4-मन की रानी छतरी में पानी 5-चाँद सा महल सम्मानित कृति--रोशनी की तलाश में(कविता संग्रह ) सम्मान --डा .कमला रत्नम सम्मान , राष्ट्रीय शिखर साहित्य सम्मान पुरस्कार --राष्ट्र निर्माता पुरस्कार (प. बंगाल -१९९६) वर्तमान लेखन का स्वरूप -- बाल साहित्य, लोककथाएँ, लघुकथाएँ लघुकथा संग्रह प्रकाशन हेतु प्रेस में