कथा दर्पण- ‘साइलेण्ट लव’
साइलेण्ट लव मुहब्बत नगर में एक अंसू अनजान रहता था. बड़ा दिल था उसका. जिससे भी मिलता बड़ी शिद्दत से
Read Moreसाइलेण्ट लव मुहब्बत नगर में एक अंसू अनजान रहता था. बड़ा दिल था उसका. जिससे भी मिलता बड़ी शिद्दत से
Read Moreसाँझ थी होने को आई, शाम की हवा की ये हिलोरें अन्त:स्थ के स्पंदन के वेग को कुछ बढ़ाने लगी,
Read Moreकैसे नमन करूं जगमोहन तेरी मूरत पाट की, कैसे तरणी पार लगाऊं गगरी फूटी घाट की..! मेरे तो तुम ही
Read Moreचुन्नु-मुन्नू बन ठन के पहली बार स्कूल चले, नानाजी की सारी बातें रख बस्ते में भूल चले, चुन्नु-मुन्नू ने कक्षा
Read Moreतुम्हारे जो विचार है, अरूपित-निराकार है, इनको गढ़ लेने दो, विहारों में चढ़ लेने दो.. कुत्सित कुवाक्य है जो अटल,
Read Moreखाली पेट सोता हूं, यतीम हूं ना….! सूखे आँसू रोता हूं, यतीम हूं ना….! स्कूल की घण्टी सुन सहम जाता
Read Moreबात पते की बतलाता हूं, जिस पर मुझको खेद है, जिस थाली में खाते है सब, उस थाली में छेद
Read Moreअब से लिखना बंद करूंगा…! लफ़्ज में दिखना बंद करूंगा…!! तुमने खरीदे लफ़्ज मेरे, हो गए सारे जज्ब़ मेरे, अब
Read Moreख़त रो पड़ा… माँ को देकर संदेशा सिपाही की शहादत का..! शब्द बिखरने लगे सिसकियों में, पंक्तियाँ बहने लगी आँसुओं
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