ख़ाक हुई मंजिल संदली-सी…!
आसमान से गिरा परिंदा, देख बद्नीयत नर की, ख़ाक हुई मंजिल संदली-सी, लुटते हुए सफर की…! पंछी इस अनजान डगर
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