ग़ज़ल
खुद को खुद में रहने दो,थोड़ा- बहुत विचरने दो।लोग कहां पहचानेंगे,चेहरा उसको रंगने दो।खुशबू जिसमें बसती है,उसको जरा महकने दो।सूरज
Read Moreमेरे मुंह से निकलीइतनी साफ मधुर आवाज की पुकारभले ही न सुनाई पड़ी हो तुम्हेंलेकिन मेरे शब्दों की ऊर्जा सेजरूर
Read More