नववर्ष
नववर्ष की परिकल्पनाकल्पना ने यूँ उकेर दीअंतर्मन में छुपी हुई होजैसे आकाँक्षा बचपन की पेड़ों पर हो चहचहातीपक्षियों की आवाजेंघोल
Read Moreमाँ तो नहीं रही, लेकिन हाँ माँ के नाम कुछ बीमा था, बैंक बैलेंस भी था, क्योंकि माँ गवर्नमेंट कॉलेज
Read Moreसृजन का नव दीप जलाकर निरुत्साह के तिमिर को भगाती रहूँ साहस के सिन्धु से माँ शारदे काव्य सागर में
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