सुनो न…
मन व्यथित है कुछ कहने कोसुनने को कुछ तुमसे गुनगुनाने कोसब कुछ तो वहीं स्थिर है आज भीवो रास्ते ,वो
Read Moreमाँ तो नहीं रही, लेकिन हाँ माँ के नाम कुछ बीमा था, बैंक बैलेंस भी था, क्योंकि माँ गवर्नमेंट कॉलेज
Read Moreसृजन का नव दीप जलाकर निरुत्साह के तिमिर को भगाती रहूँ साहस के सिन्धु से माँ शारदे काव्य सागर में
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