लेखसामाजिक *वर्षा वार्ष्णेय 18/06/201818/06/2018 अवसाद जिंदगी भी कितने रंग बदलती है ।जब भी हम सोचते हैं कि सब कुछ अच्छा चल रहा है ,अचानक एक Read More
गीतिका/ग़ज़ल *वर्षा वार्ष्णेय 18/06/2018 प्रीत नेह लगाकर भूल गए क्यों पास बुलाकर दूर गए क्यों। मैं तो तुम्हरी प्रीत बाबरी , वंशी बजाकर छोड़ गए Read More
गीतिका/ग़ज़ल *वर्षा वार्ष्णेय 13/06/2018 जज्बात जज्बातों में भीगा हुआ कुछ तन्हा सा मुकाम था कुछ लफ्ज थे उलझे हुए कुछ तन्हाई का पैगाम था समझाया Read More
कविता *वर्षा वार्ष्णेय 13/06/201823/06/2018 ख्यालात उलझे उलझे से ख्यालात कर जाते हैं बैचैन मुझे , खुश रहने की जिद में और भी उलझ गयी जिंदगी Read More
संस्मरण *वर्षा वार्ष्णेय 19/05/2018 पिता की गोद काश मैं फिर से छोटी बच्ची बन जाती और तुम्हारी गोद में खेल पाती । झूल जाती तुम्हारे कंधों पर Read More
कविता *वर्षा वार्ष्णेय 19/05/2018 आर्तनाद आर्तनाद वो धरा का पिघलता हो यूँ शबाब बिखर गई वो शमा यूँ अंधेरा हो लाजवाब । चट्टानों की वो Read More
गीतिका/ग़ज़ल *वर्षा वार्ष्णेय 17/05/2018 दर्द दर्द को रूह में उतारकर हमने जो लिखी रुसवाई , तड़फकर दुनिया भी कह उठी ये कहाँ से शबे गम Read More
कविता *वर्षा वार्ष्णेय 17/05/2018 गृहिणी हां मैं सिर्फ एक हाउसवाइफ ही तो हूँ समाज की नजरों में जिसका कोई वजूद नहीं । सपनों को आंखों Read More
कविता *वर्षा वार्ष्णेय 25/04/2018 हाउसवाइफ हां मैं सिर्फ एक हाउसवाइफ ही तो हूँ समाज की नजरों में जिसका कोई वजूद नहीं । सपनों को आंखों Read More
कविता *वर्षा वार्ष्णेय 25/04/2018 इश्क़ जीने की आरजू में रोज मरते हैं , हम वो परवाने हैं जो इश्क़ की आग में रोज खुद को Read More