आह
आह की तुम बात न करो , आंसुओं को कब भिगो पाया है जहां बहती ही रही नदी निस्वार्थ भाव
Read Moreएक इंच मुस्कान मिल जाती है डेली , ख्यालों में यूँ ही तुम्हे सोचते हुए , साथ जीने के लम्हे
Read Moreकाश मैं फिर से छोटी बच्ची बन जाती और तुम्हारी गोद में खेल पाती । झूल जाती तुम्हारे कंधों पर
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