स्त्री
चित्रित की जाती है सदियों से कागज और कैनवास पर बारीकी से सजाई जाती है घर की दहलीज पर रंगोली
Read Moreप्रेम की वीणा पर जब भी थिरकते हैं कदम सराबोर हो जाता यूँ ही बहक जाता है मन चांदनी में
Read Moreनारी हूँ मैं सिर्फ यही चिंता तो समाज को है , कौन जानता है दुख मेरा , सबको मतलब सिर्फ
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