कविता विजया लक्ष्मी 20/11/201702/12/2017 अजीब है दुनिया अजीब ये दुनिया अजीब ये सिलसिला क्यों लड़ते हैं लोग क्या मिलता है इन्हें बीज बोते हैं ये तो पौधें Read More
कविता विजया लक्ष्मी 17/10/201718/10/2017 कविता हाय रे गरिबी कैसा ये जुल्म है कोई खाकर मरे तो किसी को अन्न नही खाने को क्या कुदरत की Read More
कविता विजया लक्ष्मी 17/10/201718/10/2017 निधि छंद… बरसते सावन लगे मनभावन मोर वृंदावन देख मन पावन! नाचे वन मोर देख नयन फार अद्भुत संसार करती मनुहार! पावन Read More
हाइकु/सेदोका विजया लक्ष्मी 21/05/201721/05/2017 बेटी बेटी निराली लगती बड़ी प्यारी है बड़ी न्यारी! ……………….. नन्ही कली ने जब आँगन आई बाजे बधाई! …………….. घर आँगन Read More
कविता विजया लक्ष्मी 21/05/201723/05/2017 तमन्ना आरजु मेरी दिल की तमन्ना है मिल के रहो! ……………… जीवन के ये अनमोल पल को हँस के ज़ियो! …………… ज़िंदगी Read More
कविता विजया लक्ष्मी 21/05/201721/05/2017 तुम तुम कई बार मेरे ख़्वाबो में आया करते हों तुम्हें देखकर कई सपने सजाती हूँ जैसे कोई अपनो को पास Read More
हाइकु/सेदोका विजया लक्ष्मी 17/04/201717/04/2017 बेटी बटी निराली लगती बड़ी प्यारी है बड़ी न्यारी! ……………….. नन्ही कली ने जब आँगन आई बाजे बधाई! …………….. घर आँगन Read More
मुक्तक/दोहा विजया लक्ष्मी 21/03/201725/03/2017 मुक्तक बना फूलों से ये गजला करें स्वीकार ये माला मिटाये गम सभी मेरे इसी में भाव सब डाला भरोसा है Read More
कविता विजया लक्ष्मी 11/02/201711/02/2017 गरिबी (३)-: हाय रे गरिबी कैसा ये जुल्म है कोई खाकर मरे तो किसी को अन्न नही खाने को क्या कुदरत Read More
कविता विजया लक्ष्मी 11/02/201712/02/2017 कविता – 2 सुबह की हवाओं नेखूबसूरत सुहाने मौसम मेंसूरज का पट खोल दियाजिसे देखकर पूरी सृष्टीका सवेरा हो गयामंद मंद पवनों के Read More