उपन्यास : शान्तिदूत (पेंतालीसवीं कड़ी)
अतिथि निवास में आकर कृष्ण ने सात्यकि को राजसभा की कार्यवाही संक्षेप में समझाई, यद्यपि उसकी आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि
Read Moreअतिथि निवास में आकर कृष्ण ने सात्यकि को राजसभा की कार्यवाही संक्षेप में समझाई, यद्यपि उसकी आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि
Read Moreजब विदुर दुर्योधन को राजसभा में वापस लेकर आये, तब भी वह क्रोध से कांप रहा था। विदुर ने धृतराष्ट्र
Read Moreदुर्योधन के अशिष्टतापूर्वक राजसभा कक्ष से बाहर चले जाने पर किसी को आश्चर्य नहीं हुआ। यह उसकी जिन्दगी में पहला
Read Moreप्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में प्रारंभ से अभी तक वामपंथियों का वर्चस्व रहा है. बहुत प्रयासों के बाद भी राष्ट्रवादी
Read Moreदुर्योधन का दो टूक उत्तर सुनकर कृष्ण बहुत निराश हुए। उनका धैर्य भी समाप्त हो गया। दुर्योधन को समझाने के
Read Moreराजसभा में सर्वत्र मौन छाया था। भीष्म और द्रोण तक का तिरस्कार करने वाले युवराज दुर्योधन के सामने फिर किसी
Read Moreअब कृष्ण ने महाराज धृतराष्ट्र की ओर मुख किया। वे अपनी अंधी आंखों की पुतलियों को ऊपर चढ़ाये हुए राजसभा
Read Moreराजसभा में पांचाली के वस्त्रहरण का कृष्ण द्वारा उल्लेख करने पर युवराज दुर्योधन आगबबूला हो गया, जैसे किसी ने उसको
Read Moreकृष्ण की यह बात सुनकर धृतराष्ट्र भीतर तक कांप गये। तब तक विदुर के अलावा किसी ने उनको यह बताने
Read Moreदुर्योधन की यह गर्वोक्ति सुनकर कृष्ण क्रोधित नहीं हुए, बल्कि दयनीय दृष्टि से दुर्योधन की ओर देखा और मंद-मंद मुस्कराते हुए
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