उपन्यास : शान्तिदूत (बयालीसवीं कड़ी)
दुर्योधन का दो टूक उत्तर सुनकर कृष्ण बहुत निराश हुए। उनका धैर्य भी समाप्त हो गया। दुर्योधन को समझाने के
Read Moreदुर्योधन का दो टूक उत्तर सुनकर कृष्ण बहुत निराश हुए। उनका धैर्य भी समाप्त हो गया। दुर्योधन को समझाने के
Read Moreराजसभा में सर्वत्र मौन छाया था। भीष्म और द्रोण तक का तिरस्कार करने वाले युवराज दुर्योधन के सामने फिर किसी
Read Moreअब कृष्ण ने महाराज धृतराष्ट्र की ओर मुख किया। वे अपनी अंधी आंखों की पुतलियों को ऊपर चढ़ाये हुए राजसभा
Read Moreराजसभा में पांचाली के वस्त्रहरण का कृष्ण द्वारा उल्लेख करने पर युवराज दुर्योधन आगबबूला हो गया, जैसे किसी ने उसको
Read Moreकृष्ण की यह बात सुनकर धृतराष्ट्र भीतर तक कांप गये। तब तक विदुर के अलावा किसी ने उनको यह बताने
Read Moreदुर्योधन की यह गर्वोक्ति सुनकर कृष्ण क्रोधित नहीं हुए, बल्कि दयनीय दृष्टि से दुर्योधन की ओर देखा और मंद-मंद मुस्कराते हुए
Read Moreबोलने के लिए अवसर मिलते ही कृष्ण ने महाराज को सम्बोधित करके किन्तु राजसभा की ओर मुख करके कहना प्रारम्भ
Read Moreकृष्ण के आने से पहले ही राजसभा में सभी लोग उपस्थित हो गये थे और अपने-अपने स्थान पर बैठे थे।
Read Moreअगले दिन प्रातःकाल कृष्ण और सात्यकि नित्यकर्मों से निवृत्त हुए। फिर राजसभा में जाने के लिए तैयार होने लगे। वहां
Read Moreअतिथि शाला में सात्यकि और अपने सारथी के निवास की व्यवस्था देखकर कृष्ण अकेले ही अपनी बुआ कुंती से मिलने
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