मूर्खता के दराज में
वैसे, मूर्खता लेखन-कला टाइप एक बुद्धिमत्ता पूर्ण कृत्य है। तो, मूर्खता अपने आप में एक बुद्धिमत्तापूर्ण कला है। विश्वास मानिए!
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Read Moreबड़े भाई लोग, बढ़ रही गरमी पर ऐसा गजब का व्यंग्य मार रहे हैं कि गरमी भी “देखो आगे-आगे होता
Read Moreचुनाव के साथ ही लोकतंत्र का कार्यक्रम भी सम्पन्न हो चुका था और आचारसंहिता समाप्त हो चली थी। इधर मैं
Read Moreइधर दो दिन से परेशान हूँ कि कुछ लिखूँ, लेकिन लिख नहीं पा रहा, कारण व्यस्तता! और यह व्यस्तता कार्य
Read Moreजाफरी साहब…! हाँ….जाफरी साहब..यही नाम था उनका। बचपन की कुछ यादों के बीच जाफरी साहब भी स्मृतियों में अकसर आते
Read Moreलाखों रूपए का इनकमटैक्स इसलिए नहीं दे रहे हैं कि कोई यहाँ “भारत तेरे टुकड़े होंगे हजार” का नारा लगाए..!
Read Moreभरी दोपहरी में टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों पर वह चला जा रहा था…सूर्य की तीखी किरणें उसके शरीर को बेधती जा रही
Read Moreबात उन दिनों की है जब पहली बार मैंने वेलेंटाइन डे का नाम सुना था। “वैलेंटाइन डे” का नालेज, मेरे
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