कविता : व्यंगम व्यंग
[१] व्यंगम व्यंग ऊँचीं तरंग गिरगिट जैसा रंग | खाएँ पान बनारसी, पिए हैं जैसे भंग | [२] सावन को
Read More[१] व्यंगम व्यंग ऊँचीं तरंग गिरगिट जैसा रंग | खाएँ पान बनारसी, पिए हैं जैसे भंग | [२] सावन को
Read Moreछ्न्द के फन्द में पड़कर, सहज कविता भुलाते क्यों ? ह्रदय से जब निकलती है, फर्श से अर्श बनकर कविता
Read Moreमुक्त रचना……. उम्मीद के दामन दरक रहे थे रात अकेली सरक रही थी काली आँखों में लाली लिए भीगते बिस्तर
Read Moreअक्सर लोग कहा करें, सबके अलग नशीब कहाँ गरीबी के यहाँ, आए खुशी करीब आए खुशी करीब, रहें उम्मीदें बोझिल
Read Moreक्षीरसिंधु पद्मावती, हरीप्रिया हरि साथ कमल कमलिनी सह खिले, रमा सहित प्रभुनाथ रमा सहित प्रभुनाथ, इंदिरा पदमा कमला शेषनाग सुखपाय,
Read Moreमुझे हँसना है दुनिया में तुम रुलाने आ जाते हो क्यों? सपनों में बेवजह तुम याद दिलाने आ जाते हो
Read Moreहमें जिन्दगी में गुनगुनाना है। लोगों के साथ मुस्कुराना है। गीतमय दुनियां बनाकर यहाँ, एक धुन में सबको मिलाना है।
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