“मुक्तक”
प्रदत शीर्षक- अमृत/सुधा/पियूष/अमीय/सोम/मधु/सुरभोग समानार्थी, दोहा मुक्तक चाहत अमृत धार मधु, देव दनुज सुरभोग प्याला विष पियूष जस, नीलकंठ संयोग त्राहि त्राहि
Read Moreगुरुवर साधें साधना, शिष्य सृजन रखवार बिना ज्ञान गुरुता नहीं, बिना नाव पतवार बिना नाव पतवार, तरे नहि डूबे दरिया
Read Moreभाग्य तो भाग्य है कर्म ही तो फल बाग है बारिश के जल जैसा थैली में भर पैसा ओढ़ ले
Read Moreसुबह की लाली लिए, अपनी सवारी लिए, सूरज निकलता है, जश्न तो मनाइए नित्य प्रति क्रिया कर्म, साथ लिए मर्म
Read Moreशहर और गाँव की गलियों मे मिल जाते हैं नौजवान सिगरेट का दुआं उड़ाते चरस अफीम गांजा, हो गए हैं
Read Moreआस्थाएं , धर्म की,ज्ञान की या कर्म की; मानव ही बनाता है। सम्यगज्ञान,सम्यग दृष्टिकोण ,सम्यग भाव , एवं सम्यग व्यवहार
Read Moreवो भिगी भिगी रातो में तेरे आने की आहट मेरे कानो तक जैसें ही पहूँची जैसे लगा खुशियों का भंडार
Read Moreअनकहे से अल्फाज वर्षो से बन्द पडे जज्बात कैसे करू जाहिर किसके सामने कहूँ कब कहूँ, क्यो कहूँ कौन है
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