कविता : किसान
एक इंसान को जो सुबह से शाम काम करता है खेत है सूरज की ज्वाला में जलता जाड़े में सिकुड़ता
Read Moreएक इंसान को जो सुबह से शाम काम करता है खेत है सूरज की ज्वाला में जलता जाड़े में सिकुड़ता
Read Moreउफ़ ये क्या ! पड़ोस से रोने का स्वर आया मन करुण रस से भर गया खोला दरवाज़ा ये कैसा
Read Moreचौदह अप्रैल का वो दिन था कितना महान चौदहवीं का चाँद उतरा चौदहवीं संतान महार जाति के निम्न वर्ग में
Read Moreकुदरत का कैसा ये कहर टूटा है, जमीं सूखी है और आसमाँ रूठा है! त्राहि त्राहि मची है हर गाँव
Read Moreपश्चिमी सभ्यता के पैरोकार और धर्म का धन्धा करने वाले नैतिक-शिक्षा के ठेकेदार फिल्म-जगत से . . पूछना चाहता हूँ
Read Moreतुम्हारा विरोधाभास दिखलाना बात-बात पर ना नुकुर करना भाव यह उपेक्षा का दिखलाना
Read Moreमेरी रूह से लिपटी तेरी रूह अक्सर सिसक उठती है तनहाई की रातों में… सुलग उठते हैं एहसास मेरे तुम्हें
Read Moreजो तुम ये सोचते हो कि मैं तुम्हें याद नहीं करती तो सही सोचते हो… साँस लेना भी भला कभी
Read Moreपहली फुहार पर पुकार लो मुझे कि बूदों सी सोंधती झर जाऊं तुम्हारे आंगन में पहली बयार पर पुकार लो
Read Moreमाँ सुन ले करूण पुकार अब आ भी जा मेरे द्वार हार गया हूँ मै तुझे पुकार अब तो दे
Read More