आत्मकथा : दो नम्बर का आदमी (कड़ी 1)
प्राक्कथन जड़ चेतन गुन दोषमय विश्व कीन्ह करतार। संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि वारि विकार।। सियाराम मय सब जग
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