कुंडलिया- ज्ञानी
ज्ञानी ज्ञानिक ढूढ़ता, सतत पंथ ज्यों संत माया मोह विराग में , गुण गति कैसा अंत गुणगति कैसा अंत ,
Read Moreज्ञानी ज्ञानिक ढूढ़ता, सतत पंथ ज्यों संत माया मोह विराग में , गुण गति कैसा अंत गुणगति कैसा अंत ,
Read Moreमनोरम गाँव की गलियाँ छटा मन को लुभाती है बगीचा आम महुआ आँवला कटहल सजाती है सई की धार भी
Read Moreहिन्दुओं की आस्था भी मखौल बनी भारत में । देख राजनीति का ये रंग रोष छा रहा ।। ईश्वर की
Read More१. तुलसी का बिरवा नहीं, दिखता आँगन माँहि । संस्क्ति, आस्था त्याग सब, नए दौर में जाहिं ।।
Read More?????? कृष्ण को सदैव राधिका रही पुकारती। तृष्ण को सुने न कृष्ण राह थी बुहारती। पीर है बढ़ी चली
Read Moreकपिलों ने इस देश को, दिया बहुत कुछ यार एक कपिल मुनि हुए थे, जाने ये संसार जाने ये संसार,
Read Moreसुन्दर काया कनक सी, नयन चलाते वाण हिरनी सी मोहक चपल, हो कैसे कल्याण हो कैसे कल्याण, हृदय घायल किये
Read Moreगीत बना कर मैं नया, कहता मन की बात। काम-काम में दिन गया, आयी सुख की रात।। आयी सुख की
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