बाल कविता

बाल कविता

हम बच्चे हिन्दुस्तान के

हम     बच्चे   हिन्दुस्तान   के। हम     बच्चे   हिन्दुस्तान   के।   शीश   झुकाना  नहीं  जानते, शीश   कटाना    ही   जाना। मेरा  मजहब  मुझको  प्यारा, पर  का  मजहब  कब  माना।  

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बाल कविता

बालकविता “गुब्बारों की महिमा न्यारी”

बच्चों को लगते जो प्यारे। वो कहलाते हैं गुब्बारे।। गलियों, बाजारों, ठेलों में। गुब्बारे बिकते मेलों में।। काले, लाल, बैंगनी,

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बालकविता “सारा दूध नही दुह लेना”

मेरी गैया बड़ी निराली, सीधी-सादी, भोली-भाली। सुबह हुई काली रम्भाई, मेरा दूध निकालो भाई। हरी घास खाने को लाना, उसमें

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