इंसानियत – एक धर्म ( भाग – अट्ठाइसवां )
दरवाजे पर खड़े पांडेय जी को देखते ही उनके सम्मान में अपने दुपट्टे से सिर को ढंकते हुए शबनम ने
Read Moreदरवाजे पर खड़े पांडेय जी को देखते ही उनके सम्मान में अपने दुपट्टे से सिर को ढंकते हुए शबनम ने
Read Moreसुबह के लगभग आठ बज चुके थे जब बस प्रतापगढ़ के सरकारी बस अड्डे में घुसी थी । मुनीर बस
Read Moreजब शबनम की नींद खुली , दिन काफी चढ़ चुका था । पलंग के सामने ही दीवार पर लगी घड़ी
Read Moreऔर फिर काफी उहापोह के बाद मुनीर ने फैसला कर लिया और शबनम से मुखातिब होते हुए बोला ” तुम
Read Moreथोड़ी देर बाद चरमराहट की आवाज के साथ ही मुनीर के घर का दो पल्लों वाला दरवाजा खुल गया ।
Read Moreघटनास्थल से फरार होकर मुनीर पैदल ही अपने गांव की तरफ चल दिया था जो वहां से तकरीबन सात आठ
Read Moreथाने के बाहर पत्रकारों की भीड़ जुट चुकी थी औऱ इसी वजह से मुफ्त के तमाशबीनों की भीड़ भी बड़ी
Read Moreअसलम के कमरे में दाखिल होते ही रजिया कुर्सी से उठकर खड़ी हो गयी । जबकि असलम ने आते ही
Read Moreमंद मंद मुस्कुराते हुए वकिल राजन पंडित ने रहस्योद्घाटन किया ” असलम की जमानत के पैसे जमा हो गए हैं
Read Moreवकिल राजन पंडित अपने दफ्तर में पहुंच चुके थे । उनकी सहायक रश्मि उन्हें आज के दूसरे मुकदमों की जानकारी
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