ख्वाब की किरचें – सुधीर मौर्या
वक़्त ने मेरी बाह थाम कर मेरी हथेली पर अश्क के दो कतरे बिखेर दिए मेरे सवाल पर बोला ये
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Read Moreछोटू चाय की केतली और प्लास्टिक का गिलास लिए लाज की पहली मंजिल के कमरा नंबर 102 का दरवाज़ा खटखटाता
Read Moreओ सुजाता ! मै तकता हूं तेरी राह और चखना चाहता हूं तेरी हाथ की बनी खीर देख मै नही
Read Moreकोई सात सो साल के अंतराल पर घटी दो घटनाएं. एक सात सो साल पहले तब जब भारत, पाकिस्तान और
Read Moreलौटा लाऊंगा मैं तुम्हे, मेरे सर्वग्रासी प्रेम गंगा की लहरो को बाँध लूंगा तुम्हारे दिए रुमाल के कोने में कर
Read Moreओह मेरे देश ! मुझे चकित करते हो तुम जब देखता हूँ में नरपिशाच, हत्यारे और कामुक अफज़ल की मजार
Read Moreसच कहें तो स्त्री विमर्श खोखलेपन से गुज़र रहा है। ऐसा खोखलापन जिसे खुद स्त्री ने निर्मित किया है। इस
Read Moreउन्होंने विपत्ति को आभूषण की तरह धारण किया उनके ही घरों में आये लोगों ने उन्हें काफ़िर कहा क्योंकि वो
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