ग़ज़ल : समय से कौन जीता है समय ने खेल खेले हैं
अपनी जिंदगी गुजारी है ख्बाबों के ही साये में ख्बाबों में तो अरमानों के जाने कितने मेले हैं भुला पायेंगें
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