मुक्तक/दोहा *मदन मोहन सक्सेना 09/09/2016 मदन मोहन सक्सेना, मुक्तक (सब अपनी अपनी किस्मत को ले लेकर खूब रोते हैं) मुक्तक (सब अपनी अपनी किस्मत को ले लेकर खूब रोते हैं) रोता नहीं है कोई भी किसी और के लिए सब अपनी अपनी किस्मत को ले लेकर खूब रोते हैं प्यार Read More