गीतिका/ग़ज़ल *मदन मोहन सक्सेना 03/06/201603/06/2016 मदन मोहन सक्सेना, सफर (घर से मरघट तक ) ग़ज़ल : सफर – घर से मरघट तक आँख से अब नहीं दिख रहा है जहाँ, आज क्या हो रहा है मेरे संग यहाँ . माँ का रोना Read More