ग़ज़ल
जितना बढ़ते गए गगन की ओर उतना उन्मुख हुए पतन की ओर साज-श्रृंगार व्यर्थ है तेरा दृष्टि मेरी है तेरे
Read Moreबहुत उकता गया जब शायरी से लिपट कर रो पड़ा मैं ज़िन्दगी से अभी कुछ दूर है शमशान लेकिन बदन
Read Moreमैं भी गुम माज़ी में था दरिया भी जल्दी में था एक बला का शोरो-गुल मेरी ख़ामोशी में था भर
Read Moreतेरी ओर आना चाहूँ तेरी ओर आना चाहूँ, पर तूफ़ान हैं बहुत. मिलन के बीच में यहाँ, शैतान हैं बहुत.
Read Moreमेरी माँ ने झूठ बोल के आंसू छिपा लिया भूखी रह के भी, भरे पेट का बहाना बना लिया. सर
Read Moreजब होके आस-पास भी खला होगा तभी तो रोने में फिर इक मज़ा होगा. आँखें तेरी देखेंगी जब तड़पता
Read Moreअपनी ही अंजुमन में मैं अंजाना सा लगूं बिता हुआ इस दुनिया में फ़साना सा लगूं. गाया है मुझको
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