कविता

विश्व भारती फिर तू कोई वीर सावरकर पैदा कर

विश्व भारती फिर तू कोई क्राँति दिवाकर पैदा कर,
एक बार फिर से धरती पर कोई सावरकर पैदा कर।
जलती जाती ज्वालाएँ सब,
टूट रही हैँ मालाएँ सब,
शत शत बार तेरा वंदन करता कोई प्रभाकर पैदा कर,
एक बार फिर से धरती पर कोई सावरकर पैदा कर।
लहू उबलते पड गये ठंडे,
झुकते जाते क्राँति के झंडे,
लहराए शान से विजय पताका ऐँसा कद्दावर पैदा कर,
एक बार फिर से धरती पर कोई सावरकर पैदा कर।
अंधकार अज्ञान का छाया,
मानव को ठगती है माया,
जो शूरवीर करे प्रकाश फिर ऐँसा विद्याधर पैदा कर,
एक बार फिर से धरती पर कोई सावरकर पैदा कर।

महान भारतपुत्र वीर सावरकर जी को सादर समर्पित…

_____सौरभ कुमार दुबे

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

One thought on “विश्व भारती फिर तू कोई वीर सावरकर पैदा कर

  • विजय कुमार सिंघल

    क्रांतिवीर सावरकर न केवल स्वयं क्रन्तिकारी थे, बल्कि उन्होंने अनेक क्रांतिकारियों को प्रेरणा दी थी. उनकी स्मृति को शत-शत नमन !

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