कविता : अंतर्राष्ट्रीय बाल दिवस
बच्चे सुंदर हैं – प्यारे हैं जैसे फूल
पर, सोते हैं गली–गली में ओढ़के धूल
सहते हैं धूप–सर्दी पर नहीं छोडते माँगना भीख
बदले में कभी मिटाना पड़ता है पापियों की भूख
बच्चे निराले हैं और हैं अनमोल
पर नन्हें अंग उनके बेचते हैं जैसे खिलौने–खेल
बच्चे ‘भू’ के धन हैं और हैं कल की पहचान
पर हर जहाँ बिक जाती है उनकी मेहनत
फ़िर …….
आता है ‘बाल–दिवस’ उन्हें मनाने, साल में एक बार
पर उसी ही दिन में खाते हैं धोखे, बार–बार
फूल से भी अच्छे, ‘गीता’ से भी सच्चे,
दुनिया के मासूम बच्चे…….
अच्छी कविता. बच्चे मन के सच्चे !